मेरा परिचय। November 04, 2018 Get link Facebook X Pinterest Email Other Apps कविताएँ लिखते लिखते शायद, में खुद कविता सी हो गई हूँ; सुलझी उलझी बातें करती, में किसी पहेली सी हो गई हूँ। भावनाओं की स्याही में डूबे कलम से, न जाने क्या क्या कह जाती हूँ; वक़्त ही घाव है,वक़्त ही मरहम, बेवक़्त ये सोचती रह जाती हूँ। Comments Unknown17 November 2018 at 22:13Nice lineReplyDeleteRepliesReplyAdd commentLoad more... Post a Comment
Nice line
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