समन्दर अब खाली होना चाहता है,
दिल खोलकर इस बार रोना चाहता है;
कई राते गुज़ारी है, इसने तारे गिनकर,
बिन ख्वाबो के एक रात सोना चाहता है।
समन्दर अब खाली होना चाहता है।।
बदनाम बहुत है खारे पानी के ख़ातिर,
हर मीठी चीज़ की क्या यही है आखिर?
दफ़्न दिल में जो है, हर राज़ खोलना चाहता है,
समन्दर अब खली होना चाहता है।
कई कहानिया पनपी है इसके आँगन,
कागज़ नाव बन यहाँ बीते कई बचपन;
अनुभव वो भी कभी अपने बोलना चाहता है,
समन्दर अब खाली होना चाहता है।
कई नैया डूबी है इसकी गहराई में,
एक बार ये खुद खलासी होना चाहता है;
सवाल उठे है कई इसके दामन पर,
एक बार, बस एक बार, ये खुद सवाली होना चाहता है।
समन्दर अब खाली होना चाहता है।
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