मेरा परिचय।

कविताएँ लिखते लिखते शायद,
में खुद कविता सी हो गई हूँ;
सुलझी उलझी बातें करती,
में किसी पहेली सी हो गई हूँ।

भावनाओं की स्याही में डूबे कलम से,
न जाने क्या क्या कह जाती हूँ;
वक़्त ही घाव है,वक़्त ही मरहम,
बेवक़्त ये सोचती रह जाती हूँ।

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